बुधवार, 24 दिसंबर 2014

पुरुष ,नारी ,दलित और शास्त्र







कुछ ही दिन पहले मैंने ब्लॉग में एक लेख पढ़ा l एक महिला ने नारी की दयनीय दशा का जिम्मेदार हिन्दू धर्म ग्रंथों को माना है l उन्होंने कहा कि पुरुषप्रधान समाज में पुरुषों द्वारा रचित धर्मग्रंथों के आधार पर पुरुषों के सुविधानुसार नारी को कभी पूजनीय कहा है, तो कभी बुद्धिहीन,पतित ,अपावित्र , ताड्निया कहा हैl इसका श्रीगणेश मनुस्मृति से होता है, जिसमे कहा गया है कि नारी हर परिस्थिति (बचपन से बुढ़ापा तक ) में  पुरुषों पर आश्रित हैं l वह कभी भी स्वतंत्र नहीं है l रामायण, महाभारत में नारियों के साथ किये गए व्यभिचार और उत्पीडन धर्म के आढ में किया गया हैl इन्ही धर्मग्रंथों के आधार पर भगवान् के होने का दावा किया जाता है l उनकी पूजा पाठ की विधि-विधान बताई जाती है l मनुस्मृति के आधार पर बनी समाज रचना लोगो को दकियानुशी ,स्वार्थी और निर्मम बना दिया है ! समाज को जात-पात के नाम पर टुकडो टुकडो में बाँट दिया है l किसी को ऊँची और किसी को नीची जात घोषित कर दिया है ,जिसके फलस्वरूप तथाकथित ऊँचीजात के लोग तथाकथित नीची जात के साथ उठना बैठना पसंद नहीं करते l तथाकथित नीची जात के लोगो को वेद का अध्ययन और श्रवण निषिद्ध है l यही नहीं, तथाकथित उच्चवर्ग की स्त्रियाँ भी वेदपाठ से वंचित है l  इन शास्त्रों का सहारा लेकर उच्चवर्ग के पुरुष नारियों का और निम्नवर्ग के लोगों का सामाजिक ,शारीरिक, मानसिक और आर्थिक शोषण और दलन किया है ,इसिलिए  आज वे दलित है l नारी भी दलित है l इन सब भेदभाव और शोषण का श्रेय मनुस्मृति को जाता है l इसीलिए उच्चवर्ग आज भी मनुस्मृति का गुणगान करना नहीं भूलते जबकि भारतीय समाज के  विघटन में मनुस्मृति का योगदान उल्लेखनीय है !
        शास्त्रों में भगवान का अर्ध-नारीश्वर की कल्पना की गई है ,अर्थात आधा शरीर नर और आधा शरीर नारी है l यह कौन व्यक्ति है ? क्या किसी ने कभी उनको देखा है ? जब ईश्वर कौन है ? पता नहीं, तो अर्धनारीश्वर का पता कैसे लगेगा ?क्या इसका मतलब यह तो नहीं है कि ईश्वर केवल एक बौद्धिक कल्पना मात्र है ?
       दुनियां में दो प्रकार के लोग होते हैंl प्रथम वे है जो मानते हैं कि ईश्वर हैं l इन्हें आस्तिक कहते हैं l दूसरे वे लोग हैं जो मानते हैं कि ईश्वर नहीं है l इन्हें नास्तिक कहते हैं l जो ईश्वर को नहीं मानते हैं उनके लिए पूजा –पाठ ,उपवास का कोई समस्या ही नहीं है l वे अपने ढंग से खाते पीते हैं और अपना जीवन यापन करते हैं l न मंदिर-मस्जिद जाने का झंझट न कोई  कर्मकांड या नमाज की बंदिश l मुसीबत तो उनको झेलनी  पड़ती है जो मानते हैं कि भगवांन हैं l वही हमारे जीवन दाता ,अन्नदाता ,जीवन के हर सुख –दुःख दाता-हर्ता  हैंl  इसीलिए धर्मग्रंथों में दिए गए नियमों के अनुसार उनकी पूजा अर्चना करनी  पड़ती है l परन्तु यह निश्चित नहीं है कि इन पूजा पाठ ,हवन ,जप से इच्छित वस्तु की  प्राप्ति होगी या फिर ईश्वर का दर्शन होगा l आप पूजा करते जाइये और 'पूंजी का स्वाह', कहकर भूल जाइये l
       ईश्वर के मानने वालों में भी दो ‘मत’  के लोग हैं l साकार और निराकार l साकार का अर्थ है कि जैसे मनुष्य या फिर कोई अन्य प्राणी का एक शरीर है वैसा ही ईश्वर का भी एक शरीर है ,चाहे वह कितना शुक्ष्म या विशाल क्यों न हो , लेकिन है l उन्होंने अपनी कल्पना से ब्रह्मा ,विष्णु ,शिव,काली, दुर्गा,लक्ष्मी, सरस्वती ,इंद्र, वरुण, अग्नि आदि छत्तीस कोटि देव देवियों की सृष्टि की है l लेकिन २०-२५ नामों को छोड़ कर बाकी देव

देवियों*  के नाम भी शायद इन भक्तों को मालुम नहीं होगा l साकार में विश्वास रखने वालों का विश्वास है कि ईश्वर किसी भी रूप में हो सकते हैं जैसे मछली .सुकर ,सांप ,पक्षी या फिर कोई नदी ,पर्वत ,यहाँ तक कि एक पत्थर भी हो सकते हैं और इन सबका पूजा विधान भी शास्त्रों में मौजूद हैं l इन विविध विश्वासों में कौन सा सही और कौन सा गलत कोई नहीं बता सकताl जनमानस भ्रमित है और हर छोटी से छोटी शंका के निवारण के लिए पंडितो के पास दौड़ना पड़ता है l वो जो कहे वही बिना  तर्क के मान लेना पड़ता हैl दूसरे शब्दों में समाज धार्मिक आस्था के लिए पूरी तरह ब्राह्मणों पर आश्रित है l
       निराकार में विश्वास रखने वालों का मत है कि ईश्वर का कोई शरीर या रंग-रूप नहीं है l वह शक्ति पुंज है, शक्ति रूप में हर जगह ,हर वस्तु में विद्यमान हैl  वह अनादि ,अदृश्य ,निविकार ,निराकार है l सूक्ष्म रूप में या यूँ कहे  शक्ति रूप में (Energy ) मौजूद हैं l
या देवी सर्व भूतेषु शक्ति रुपेण संस्थिता ........ “ में विश्वास करते हैं l जीव में चेतना ,बुद्धि ,निद्रा , भूख ,तृष्णा ,स्मृति ,भ्रान्ति ,भाव, भावनाएं सब शक्ति से संचालित है l ग्रह ,नक्षत्र तारे सब शक्ति से बंधे हुए हैं और उसी से चलायमान हैं l
       भारतीय धार्मिक संस्कृति जो धर्मग्रंथों पर आधारित है, विरोधाभाष से भरा पड़ा है l एक उदहारण यहाँ प्रस्तुत है l कहते हैं- गौतम बुद्ध खुद ईश्वर को नहीं मानते थे अर्थात वे नास्तिक थे परन्तु ई,श्वर को मानने वालों ने उन्हें भगवान का अवतार माना है l यदि गौतम बुद्ध के उपदेशों पर विचार करे तो यह स्पष्ट हो जायेगा कि वे निर्गुण विचार धारा के व्यक्ति थे l इसीलिए सगुण  वालों ने उन्हें नास्तिक कह दिया l
       गौतम बुद्ध के चार मुख्य उपदेश और आठ उससे जुड़े सह उपदेश हैं l
चार मुख्य उपदेश हैं :-

१.यह संसार दुःख और कष्टों से भरा है l 

२. दुःख और कष्टों का कारण इच्छा है l

३ इच्छा का त्याग ही इस संसार के दुःख कष्टों से मुक्ति दिला सकता है l

४. मुक्ति या मोक्ष के मार्ग की प्राप्ति आठ उपमार्ग के यात्रा से ही हो सकती है l
गौतम बुद्ध ने ईश्वर प्राप्ति की बात नहीं की, न ईश्वर प्राप्ति के लिए तपस्या की l संसार में फैले दुःख –कष्टों से कैसे मुक्ति मिले इस बात को जानने के लिए तपस्या की l उन्हें ज्ञान प्राप्त हुआ कि मनुष्य की इच्छा ही दुःख का मूल कारण है ,इसका त्याग ही उसे  संसार के सभी दुःख-कष्टों से मुक्ति दिला सकता है l बुद्ध ने आत्मा या परमात्मा के अस्तित्व के बारे में यह नहीं कहा कि परमात्मा नहीं है l उन्होंने ईश्वर को एक व्यक्ति के रूप में न मानकर एक सर्वोच्च शक्ति के रूप में माना है जो इस विश्व के संचालन में निहित हैl इस शक्ति  का ना कोई नाम है ,ना कोई रूप या रंग है l यह ईश्वर का निर्गुण, निराकार रूप है l इसीलिए उनकी नज़रों में सब कर्म-काण्ड व्यर्थ है lआजविश्व  का विज्ञानं भी यही मानता है कि इस विश्व में शक्ति का अलग अलग रूप है l उसी के कारण गृह नक्षत्र अपने अपने मार्ग पर भ्रमण कर रहे है l इसे आप गुरुत्वाकर्षण शक्ति कहे   या कुछ और ,नाम से कोई फरक नहीं पड़ता l विश्व की उत्पत्ति के बारे में अभी खोज चल रहा है ,परन्तु यह निश्चित है कि इसके पीछे कोई व्यक्ति न होकर स्वयं-उत्पन्न कोई शक्ति है l यदि किसी दिन यह साबित हुआ,उस दिन व्यक्तिवाद और पूजा पाठ समाप्त हो जाएगा l समाज में ऊंच नीच भी समाप्त हो जायगा l
                गीता में लिखा है –जब जब धर्म की ग्लानी होगी तब भगवान अवतार लेंगे और धर्म की रक्षा करेंगे l कौन से धर्म की बात लिखी है समझ में नहीं आता l प्रतिदिन औरतों से बलात्कार हो रहा है, कमजोर वर्ग पर जुर्म किया जा रहा है, मजदूरों से काम कराकर कम मजदूरी दिया जा रहा है, मंत्री और अफसर घपला कर अपनी अपनी तिजोरी भर रहे हैं, पंडित भोले भाले लोगों  को भगवान के नाम से ठग रहे हैं, धर्मगुरु चेलिओं के साथ रंगरलिया कर रहे हैं l क्या ये सब धर्म की ग्लानी नहीं है ? क्या ये सब धर्म स्वीकृत कृत्य हैं ? अगर नहीं तो भगवान को तो अभी ही आ जाना चाहिए l लेकिन कैसे आएंगे ? भगवान कोई व्यक्ति होंगे तभी तो आयेंगे, उनका न आना इस बात को साबित करता है कि भगवान कोई व्यक्ति नहीं  हैं वरन शक्ति है जो हर भौतिक वस्तु (जीव,जंतु,वनस्पति,निर्जीव )में सूक्ष्म रूप में मौजूद हैं और कार्य करने के योग्य बनाता है l इस शक्ति के बिना कोई काम नहीं होता है l अणु .परमाणु ,बायो सेल में यह शक्ति निहित है l यह अपना रूप बदलता रहता है ,कभी ध्वनि कभी प्रकाश तो कभी बिजली बन जाती है l
       मनुस्मृति आधारित समाज की स्थापित रचना.और सोचने समझने का ढंग ,हमारे जीवन दर्शन में परिवर्तन की आवश्यकता है l वे सोच ,फिलासफी सब पुराने हैं और आज अर्थ हीनं है l आज कोई भी व्यक्ति अपनी इच्छानुसार कोई भी काम कर सकता है और कर रहे हैं l निम्नवर्ग का एक व्यक्ति शिक्षक और वैज्ञानिक का काम कर रहा है और एक उच्चवर्ग का व्यक्ति जूते के दूकान में जूता बेच रहा हैl ये दोनों काम इमानदारी और सम्मानजक काम है और आज का समाज इसे स्वीकार करता है l इसीलिए मनुस्मृति का महत्त्व सिमटकर केवल मुट्ठी भर लोगो में रह गया है l अधिकतर लोगो के लिए यह निरर्थक है l जनसँख्या की दृष्टि से देखा जाय तो दलितों से ज्यादा संख्या नारीयों  का है l नारी चाहे उच्चवर्ग की हो या निम्नवर्ग की ,सबके लिए उन शास्त्रों ने उन्हें “बुद्धिहीन पतित ,अपवित्र और नरक का द्वार” कहा है l इसीलिए नारी भी दलित में सम्मिलित है l ऐसे में शास्त्र भगवान के बारे में सही सोच पैदा करने के बदले समाज में भेद भाव पैदा करने का काम ज्यादा किया है l  

कालीपद "प्रसाद"
          

बुधवार, 15 अक्तूबर 2014

कार्ला की गुफाएं और अशोक स्तम्भ


 कार्ला का प्राचीन नाम "बलुरक "था |कार्ला की पहाड़ियाँ  लोनावला  से करीब 20 कि.मी दूर और मुंबई के सोपारा (नालासोपारा )से करीब १०० कि ,मी . पूर्व-दक्षिण में स्थित है |भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के अनुसार ई ,पु  दूसरी शताब्दी से लेकर छठी शताब्दी के दौरान बौद्ध धर्म के १६ गुफाएं हैं | इनमे से एक  गुफा के  मुख्य द्वार पर एक अशोक स्तम्भ है (चार शेरों की  मूर्ती )! यह हुबहू सारनाथ के अशोक स्तम्भ जैसा है | इसमें रख रखाव की कमी के कारण इस पर घास और दुसरे बनस्पतियां उग आयें हैं फिर भी स्तम्भ तन कर खड़ा है | यहाँ एकविरा देवी का मंदिर भी है ! लोग देवी पूजन के लिए यहाँ आते हैं और प्राचीन गुफाओं के सैर का आनंद भी उठाते हैं ! हमने भी इसका आनंद उठाया |कुछ चित्र नीचे प्रस्तुत कर रहा हूँ !






गुफा के ऊपर से गिरते पानी मेनन बच्च खेल रहे हैं |

उफ़ा के अन्दर जाने के लिए सीडी (फिलहाल बंद है )




मुख्य द्वार

द्वार के ऊपर का दृश्य


                                                                              
अर्ध वृत्ताकार सभागृह



भीतर का दृश्य

द्वार पर अशोक स्तम्भ






कालीपद "प्रसाद "

रविवार, 31 अगस्त 2014

गणपति वन्दना (चोका )


गणपतये नम:


विध्न हन्ताय 
ऋद्धि सिद्धि दाताय
पार्वती पुत्रं
अहम्  त्वम नमामि |
आरती करूँ 
जन गण विधाता 
विनायक का  |
मुसा पर सवार 
मोदक प्रिय 
लम्बोदर देवता 
मंगल मूर्ती 
गजेन्द्र मुंड धारी 
त्वम् नमामि |
महादेव नंदन 
करूँ वंदन
पद द्वय तुम्हारे 
गण हिताय 
गण पतये नम:
गण रक्षक 
गण राजाय नम:
वृहदाकार 
गज कर्णय  नम:
विद्या भण्डार 
विद्या दाताय नम:
महाभारत 
लिपिकायाय नम:
वुद्धि दाताय नम:|



चोका : ५+7+५+7+५+7 +...............+५+7+५+7+7 

कालीपद 'प्रसाद '
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शनिवार, 30 अगस्त 2014

नरेन्द्र मोदी का पहला जनहित कार्य

                                      जब से नरेन्द्र मोदी प्रधान मंत्री बने तब से जो भी कदम उठाये ,वे सब जन विरोधी कार्य  साबित हुए ,जैसे रेल का किराया बढ़ाना ,डीज़ल /पेट्रोल का भाव बढ़ाना ,प्याज जैसे आवश्यक वस्तु भाव बढ़ना इत्यादि |इन सबसे यही लगने लगा था कि सरकार चाहे कांग्रेस का हो या बी जे पी के  ,हर सरकार जन विरोधी है | उनका काम केवल जनता से वादा करना और उनको बेवकूफ़ बनाना है | उनका मुक्य उद्येश्य होता है सत्ता हासिल करना और उद्योगपतियों के हित की रक्षा करना क्योंकि उन्ही से पार्टियों को चुनाव के लिए धन मिलता है |सरकार का हर निर्णय सीधा या परोक्षरूप में उन्ही के हित में होता है ! लेकिन गणेश चतुर्थी के अवसर पर एक सुखद आश्चर्य देश के प्रधान मंत्री श्री नरेंद्र मोदी के "प्रधान मंत्री जन -धन " योजना के माध्यम से आया | शायद गणपति जनता से खुश हुए | गण -जनता , पति -स्वामी ,जनता के स्वामी -गणपति  ने अपने जन्मदिन के अवसर पर ,जन अधिपति अर्थात प्रधान मंत्री के माध्यम से सबसे गरीब जनता को एक तोहफा दिया है "प्रधान मंत्री जन -धन " योजनाके रूप में ! सबसे कमजोर समझे जाने वाले वर्ग के लिए यह खुश खबर है ! इस योजना के माध्यम से १५ करोड़ लोगो को फायदा पहुचाने का लक्ष है| ये लोग बैंक खता खोलने की बात कभी स्वप्न में भी सोच नहीं सकते थे | इस योजना के माध्यम से न केवल बैंक खता खोल सकते हैं अपितु उन्हें एक लाख रुपये दुर्घटन -बिमा भी मिलेगा |
             इस योजना के अंतर्गत "जीरो बैलेंस "पर खाता खोला जा सकता है और ५००० रूपये तक ऋण लिया जा सकता है |छोटे मोटे काम करने वालों के लिए यह राशि मददगार साबित हो सकता है|इस योजना के अंतर्गत खाता खोलने पर कई लाभ हैं ,जैसे :-
१.  १००००० रुपये का  दुर्घटना -बीमा
२  .५००० रुपये  का ऋण
३   सरकारी सहायता //लाभ सीधा लाभार्थ के खाते में ट्रान्सफर किया जा सकता है
४.  दलाल या एजेंट से मुक्ति
५   विद्धावस्था पेंशन सीधा अकाउंट ट्रान्सफर किया जा सकता है

 यह वास्तव में एक जन-हितकारी कार्य है परन्तु देखना यह है कि सरकारी तंत्र एवं बैंक कहाँ तक इस योजना को सफल बनाने में सहयोग करते है और इनके असहयोग की दशा में मोदी सरकार योजना को कैसे सफल बनाता है |


कालीपद 'प्रसाद "

मंगलवार, 26 अगस्त 2014

धर्म संसद में हंगामा

             शिर्डी के साईं  बाबा भगवान है या नहीं इस विषय पर चर्चा के लिए यह धर्म संसद शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती द्वारा बुलाया गया था !इसमें साईं भक्तों को भी अपना पक्ष रखने के लिए आमंत्रण किया गया था |सबसे पहले यह कहना उचित होगा कि यह विषय ही गलत है | साईं के भक्तों ने बार बार  यह कहा कि साईं ने कभी नहीं कहा कि वह भगवान है  |इसलिए इसपर विचार करना ही अर्थ हीन है | जब किसी के तरफ से साईं के भगवान् होने का  कोई दावा ही नहीं  है तो चर्चा किस बात की ?  जहाँ तक साईं पूजा की बात है तो हिन्दू धर्म में तो ३३ कोटि,देव देवी हैं ,भक्त किसी की  भी पूजा कर सकते है |किसी की पूजा करने में तो धर्म में कोई बाधा नहीं है ! साईं ने ऐसा काम किया है जिस से लोग उन्हें देवतुल्य मान कर पूजने लगे |इसमें गलत क्या है ? शास्त्रों में ३३ कोटि देवों के सभी नाम तो लिखे नहीं है फिर भी उनकी पूजा क्यों होती है ? जिस समय शात्रों को लिखा गया था उस समय साईं का आभिर्भाव धरती पर नहीं हुआ था इसीलिए उनका नाम शास्त्रों में कैसे आता ?शास्त्रों को लिखने वालों के स्वप्नों में नहीं आया होगा कि कलियुग में साईं नाम से कोई महात्मा होंगे जो जनता के दिलों में राज करेंगे | 

          दूसरी बात जो विचार करने लायक है वह है कि भगवान कौन हैं ?भगवान की परिभाषा क्या है ? उनका स्वरुप क्या है ? राम ,कृष्ण ,बुद्ध ,नानक भी मानव थे लेकिन उन्हें हिन्दू भगवान् मान कर पूजते हैं| क्या वे भगवान् के परिभाषा के मुताबिक खरे उतरते हैं ? किसी बड़े को या महामानव को पूज्य मान कर पूजा करना, श्रद्धा  करना तो हिन्दू धर्म का परम धर्म ,फिर साईं को पूज्यमान कर यदि उनके भक्त उनकी पूजा करे तो शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती और उनके भक्तों को आपत्ति क्यों है ?
             
          अपने को साधू सन्त कहलाने वाले  और भारतीय संस्कृति के रक्षक मानने वालों ने  आमंत्रित  साईं भक्तो से जो व्यावहार किया वह निश्चित रूप से सभ्य संकृति का परिचायक नहीं है ! वे आमंत्रित  थे ,उन्हें अपनी पूरी बात सबके सामने रखने का अवसर देना चाहिए था ,उनकी बातो का तर्क से  खंडन करना चाहिए था , वो  तो किया नहीं गया उलटे उन्हें मंच से निकाल दिया गया ! इससे यही निष्कर्ष निकलता है कि शंकराचार्य के शिष्यों में अलग विचारधारा के लिए सहन शक्ति नहीं है |जो वो सोचते है उसे ही दूसरों से मनवाना चाहते हैं | हिन्दू धर्म में तो सभी धर्म समा जाते है ,सभी संप्रदाय समा जाते हैं फिर साईं सम्प्रदाय  क्यों नहीं ?

             शंकराचार्य और उनके शिष्यों से यही उम्मीद की जाती है कि इस बात को और तुल ना दे और भक्तों की भावनाओं का सम्मान करते हुए ,साईं पर कोई और विवादस्पद बयां न दें !


विनीत 
कालीपद "प्रसाद "
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सोमवार, 18 अगस्त 2014

ईश्वर कौन हैं ? मोक्ष क्या है ? क्या पुनर्जन्म होता है ? (भाग २ )


 प्रिय मित्रों ,
पिछले एक सप्ताह के प्रवास के समय ब्लॉग के माध्यम से आप से संपर्क नहीं हो पाया | प्रवास में जाने के पहले "धर्म और आध्यात्मिकता " के ऊपर एक लेख लिखा था जिसका शीर्षक दिया था ,"ईश्वर कौन हैं ? मोक्ष क्या है ? क्या पुनर्जन्म होता है ?"  वैसे तो यह विषय सनातन है, शाश्वत है ,इस पर मनुष्य जब से होश संभाला है ,तबसे आलोचना  ,विचार विमर्श करते आये हैं |जितने लोग हैं उतने ही मत है |मुनि ऋषियों ने अपने विशुद्ध ज्ञान को शास्त्रों और पुराणों के  रूप में प्रस्तुत किया !लेकिन कोई एक भी मत ऐसा नहीं है जो सर्व मान्य  हो और ईश्वर का साक्षातकार कराने में समर्थ हो |यही कारण है कि आज भी ईश्वर की खोज जारी  है |" ईश्वर को खोजना या पाना ही आध्यात्मिकता है "| इसी विश्वास के साथ "धर्म और आध्यात्मिकता " का दूसरा भाग  प्रस्तुत कर रहा हूँ |



                                                                           
बाल कृष्ण सबका कल्याण करें !
         

          ईश्वर कौन हैं ? मोक्ष क्या है ? क्या पुनर्जन्म होता है ? (भाग २ ) 


             सभी जीवों में शायद मनुष्य ही ऐसा जीव है जिसमें भाव ,भावना ,वुद्धि ,काम ,क्रोध ,लोभ , मोह, घृणा , ईर्षा ,प्यार इत्यादि स्वाभाविक प्रवृत्तियां ज्यादा पाई जाती है | अन्य जीवों में भी ऐसे अनेक सहज प्रव्र्तियाँ पाई जाती हैं परन्तु मनुष्य विशेष है एक प्रवृत्ति के लिए ,वह है "मोक्ष " पाने की प्रवृत्ति अर्थात जन्म-मृत्यु के कष्ट से मुक्ति | ऐसा माना जाता है  कि आत्मा (उर्जा की इकाई ) जब (महा शक्ति पुंज ) परमात्मा में मिल (विलय ) जाती है तो उसे जन्म-मृत्यु के दुःख कष्ट से मुक्ति मिल जाती है "|यही है 'मोक्ष' की  अवधारणा |
                 अब "मोक्ष" कैसे मिले  ? न ईश्वर /अल्लाह को किसी ने देखा है ,न उनकी आकृत -प्रकृति को कोई जानता है और न उनकी निवास स्थान का पता है | इस अवस्था में समाज के हर व्यक्ति अपनी वुद्धि के अनुरूप ईश्वर की कल्पना की और उनके खोज में लग गए |  कुछ विशिष्ट लोगो ने मिलकर ईश्वर की खोज के लिए कुछ अनिवार्य कार्य और नियमों का निर्धारण कर दिया | इन कायों को करना और नियमों  का पालन करना "धर्म" माना गया |  अर्थात धर्म का पालन करके ही ईश्वर तक पहुंचा जा सकता है |परन्तु विडंबना यह है कि कोई भी इस रास्ते पर चलकर ईश्वर तक पहुँच नहीं पाया | धर्म-कर्म सांसारिक है और आध्यात्मिकता पारलौकिक है |  जहाँ धर्म-कर्म समाप्त होता है वहीँ से आध्यात्मिकता शुरू होती है ! 
                 मनुष्य के क्रमिक विकास के साथ साथ मनुष्य अनेक समूह में बंट गए और हर समूह ने धर्म-कर्मों का अलग अलग सूचि बना लिए |उन कर्मों का करना ही उस "धर्म " का पालन करना माना जाता है ,जैसे हिन्दू धर्म में पूजा पाठ,हवन करना , मुश्लिम में रोजा रख्नना ,नमाज पढना ,इत्यादि |इसी प्रकार हर धर्म का अलग अलग नियम है | परन्तु प्रश्न यह उठता है कि क्या इन धर्म -कर्मों (कर्मकांड ) से आज तक किसी धर्म में कोई व्यक्ति ईश्वर की खोज कर पाया है ? उत्तर है "नहीं '| इसका सीधा अर्थ है कि न ईश्वर इन धर्म -कर्म (कर्मकांड )से मिलता है और न कोई धर्म पुस्तक पढने से मिलता है ,अगर मिलना होता तो आदिकाल से या जब से इन धर्मों की उत्पत्ति हुई है ,तब से आज तक किसी न किसी को मिलगया होता |चूँकि किसी धर्म के माध्यम से अभीतक ईश्वर नहीं मिला इसीलिए कोई भी यह दावा नहीं कर सकता है कि उसका धर्म दुसरे धर्म से अच्छा है | इसके विपरीत सभी धर्म का इष्ट एक है | हम भूल जाते हैं कि हम धर्म  का पालन ईश्वर (परमात्मा ) की प्राप्ति के लिए करते है | इसिलिये  इसमें कोई बुरा काम नहीं होना चाहिए | इसके वावजूद हर धर्म में कुछ अच्छाईयाँ हैं तो कुछ बुराइयाँ भी | धर्म -कर्म एक राह  है |हम सब अलग अलग राह के राही हैं लेकिन मंजिल एक हैं | हमारी राह में अभी ईश्वर मिले नहीं है , इसीलिए हमारा कोई हक़ नहीं बनता है कि हम दूसरों को कहे कि तुम अपना राह छोड़कर मेरे राह में आ जाओ | यह अनुचित कार्य किसी को करना नहीं चाहिए | वास्तव में ईश्वर कोई विशेष धर्म (कर्मकांड ) में बंधे नहीं है | सत्य तो यह है कि सभी धर्मों का मूल सिद्धांत एक ही है ,वह है ,"ईश्वर मानव के ह्रदय में निवास करते हैं "| अत: इंसान को अंतर्मुखी होकर उस "अहम् ब्रह्मा अस्मि'का खोज करना  चाहिए |
बाहर वह कहीं नहीं मिलेगा |अपने में ईश्वर को खोजना ही आध्यात्मिकता का पहला सोपान | सिद्ध मुनि ऋषि एवं महामानव गौतम बुद्ध ने यही किया | उन्हें शायद निराकार ब्रह्म (महाशक्ति पुंज या प्रकाश पुंज ) का दर्शन हुआ होगा , जिसमे केवल भौतिक वस्तु की दशा की स्थिति परिवर्तन दिखाई दी होगी ,निराकार का कोई परिवर्तन नहीं हुआ होगा | उस परम सत्ता से एकात्मभाव स्थापित किया होगा और परमानन्द का अनुभव किया होगा |इसीलिए इन कर्मकांडों का पालन करना ईश्वर प्राप्ति के लिए आवश्यक नहीं लगता यदि हम अपने अन्दर के परमशक्ति पर ध्यान केन्द्रित करने  में सक्षम है | इस परमशक्ति का कोई नाम नहीं है |यह तो हम अपने सुविधा के लिए उन्हें ईश्वर,अल्लाह ,गॉड आदि अलग अलग नाम से पुकारते है | इस परमाशक्ति को खोजना ही आध्यात्मिकता है |अत; धर्म -कर्म (कर्मकाण्ड ) से ज्यादा महत्वपूर्ण आध्यात्मिकता है |
               आध्यात्मिकता अपने में निहित उस शक्तिकण (आत्मा )के अस्तित्व से परिचय कराता है और अंतत:उस परमशक्ति की ओर ले जाती है |
                                           जय श्री कृष्ण !
कालीपद "प्रसाद " 
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सोमवार, 11 अगस्त 2014

ईश्वर कौन है ?मोक्ष क्या है ?क्या पुनर्जन्म होता है ?





ईश्वर कौन हैं ? क्या हैं ?
व्यक्ति हैं ? वस्तु हैं ? या शक्ति हैं ?
आध्यात्मिक विवेचना तो बहुत पढ़ा किन्तु शब्दों के भूल भुलैया में ईश्वर को खोज नहीं पाया ,वास्तव में समझ नहीं पाया | अब वैज्ञानिकों के दृष्टि कोण से देखें तो उनको लगता है कि हिग्स पार्टिकल ही गॉड पार्टिकल(ईश्वरीय कण)है अर्थात उत्पत्ति का आधार है | यदि गॉड पार्टिकल(ईश्वरीय कण) ईश्वरीय तत्त्व का इकाई है तो इन ईश्वरीय इकाईयों का पुंज (समूह ) ईश्वर(परमात्मा )हैं और हर एक इकाई एक आत्मा है | अगर यह सच है तो ईश्वर ना तो कोई वस्तु है और ना कोई व्यक्ति | ईश्वर निश्चित रुप में शक्ति (एनेर्जी)है | शक्ति (एनेर्जी) का कभी विनाश नहीं होती,केवल उसका रूप परिवर्तन होता है | कभी विजली ,कभी ध्वनि ,कभी प्रकाश इत्यादि रूप में प्रकृति में मौजूद हैं | आध्यात्मिकता कहती है कि आत्मा नित्य है, सनातन है| आत्मा कभी मरती नहीं केवल चोला बदलकर दूसरा रूप धारण करती है | हर शक्ति ईकाई एक आत्मा है और इन ईकाइयोंके पुंज (समूह ) परमात्मा हैं| फिर परमात्मा या महाशक्ति का रूप क्या है ? शक्ति अदृश्य है ,निराकार है | अत: (शक्ति पुंज) ईश्वर भी अदृश्य और निराकार है |
     आत्मा से आत्मा मिलकर परमात्मा का रूप लेती है और शक्ति से शक्ति मिलकर शक्ति पुंज (अनन्त शक्ति ) बनता है | शक्ति पुंज से अलग हो कर शक्ति इकाई(आत्मा) कोई भी रूप धारण कर सकती है | एक छोटे से कीड़े मकोड़े से लेकर एक विशाल हाथी बन सकते हैं| देह आत्मा का बाहन है और जीवन यात्रा समाप्त करके देह छोड़कर अनन्त शक्ति (परमात्मा )में विलय हो जाते हैं | देह भी विखंडित होकर पञ्च तत्व में मिल जाते हैं ,इसीलिए ना शरीर का पुनर्जन्म होता है ना शक्ति (आत्मा ) का क्योकि शक्ति कभी नष्ट नहीं होती |श्री राम चन्द्र मिशन (चेन्नई) के अध्यक्ष श्री पार्थ सारथी राजगोपलाचारी इस सन्दर्भ में 
कहते है ;
”पुनर्जन्म ही कुछ गलत सा लगता है , पुनर्जन्म किसका ? आत्मा का ? नहीं ;क्योंकि जैसा हम देखते हैं कि आत्मा विद्यमान है और उसका अस्तित्व सदा रहता है | तो क्या शरीरका पुनर्जन्म होता है ? नहीं ;क्योंकि आत्मा के इस्तेमाल के लिए पंचतत्व से बने एक नए शरीर की रचना होती है |तो फिर वह क्या है जिसका पुनर्जन्म होता है ? मैं केवल इतना कह सकता हूँ कि पुनर्जन्म की अवधारणा ही अनावश्यक प्रतीत होती है |”
    उपरोक्त दृष्टिकोण से देखें तो किसी भी जीव या प्राणी का पुनर्जन्म नहीं होता है | केवल शक्ति का रूप परिवर्तन होता है| आज जो ध्वनि के रूप में है ,कल वह बिजली या प्रकाश के रूप में हो सकता है| यदि ईश्वर महाशक्ति(उर्जा पुंज ) है तो यह उर्जा भौतिक़ रूप में जीव भी हो सकती है और निर्जीव भी ,क्योकि निर्जीव में भी सूक्ष्मतम कण होता है जो उसकी  उत्पत्ति का कारण है |धर्म में भी पत्थरों और पहाड़ों को भगवान मान कर पूजा गया है|
    आत्मा (उर्जा की इकाई ) ईश्वरीय (उर्जापुन्ज)का सुक्ष्मतम कण है | एक इकाई (कण)से दुसरे इकाई में  कोई अंतर नहीं है | यह कण (आत्मा )महाशक्ति पुंज में स्वतंत्र विचरण करता है | यही ईश्वरीय अवस्था है ,परमानंद की  अवस्था | सभी बाधा बंधन से मुक्त है | शायद यही है मोक्ष की अवधारणा | यहाँ भौतिक स्वरूप से कोई सम्बन्ध नहीं है | स्थूल से विपरीत सूक्ष्म रूप है, न कोई भाव है न कोई भावना |भाव, भावना ,मन,चित्त,वुद्धि ,विचार ,आकार, प्रकृति तो स्थूल रूप का परिचायक है |  
           भौतिक जीव रूप में भाव ,भावना ,मन ,चित्त ,वुद्धि ,विचार से ही सुख दुःख की अनुभूति होती है |  निर्जीव भौतिक रूप इन सभी से मुक्त हैं | केवल भौतिक जीव रूप ही दुःख –दर्द ,जन्म –मृत्यु से मुक्ति चाहता है ,निर्जीव नहीं क्योंकि उनमे भाव,भावना और सुख-दुःख की अनुभूति नहीं होती| शायद यही कारण है कि उर्जा (शक्ति ) की निर्जीव इकाई ज्यादा स्थायी है जीव इकाई अस्थायी है और जल्दी जल्दी अपने कलेवर बदलती है |आत्मा (शक्ति की इकाई )की निर्जीव अवस्था में स्थिति परिवर्तन की समस्या होती है तो यह शक्ति विकराल रूप धारण कर लेती है |पत्थर से पत्थर टकराने पर अंगार निकलता है |परमाणु का विस्फोट भी उस शक्ति का स्थिति परिवर्तन का विरोध प्रदर्शन है
      जीवात्मा (ऊर्जा की इकाई)  शरीर का जीवन यात्रा करती है और फिर शरीर छोड़कर अपने सूक्ष्म रूप धारणकर परमात्मा में विलीन हो जाती है | जीवात्मा सदा है, नित्य है ,अविनाशी है | इसीलिए जीवात्मा का न जनम होता है न मरण | जन्म मरण तो शरीर का होता है परन्तु पुनर्जन्म तो किसी का भी नहीं होता है |पुनर्जन्म के लिए वही जीवात्मा और वही शरीर चाहिए |आत्मा न जनम लेती है न मरती है और न नया रूप के लिए वही शरीर रहता है |इसीलिए पुनर्जन्म का अवधारणा का कोई अर्थ नहीं रह जाता है ,वह निरर्थक हो जाता है |क्रमश:... 

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शनिवार, 2 अगस्त 2014

महादेव का कोप है या कुछ और ....?

           


                                                             

               महाराष्ट्र में पुणे जिले के मालन गाँव में प्राकृतिक आपदा आई है |
इस प्रलय में ७१ लोग मारे गए ,१०० से ज्यादा लोगों  की मलवे में दबे होने की  आशंका है | ८ लोगो को बचा लिया गया है| टी वी चनेलो में ,समाचार पत्रों में यह प्रचार किया जा रहा है कि यह महादेव का प्रकोप है | वास्तविकता  तो यह है कि अत्यधिक वर्षा  के कारण मिट्टी बहुत  गिली  हो गयी  और पत्थर के  साथ मिटटी  भी नीचे आगये जिससे यह हादसा हुआ | ऐसे हर प्राकृतिक घटना को भगवान से जोड़कर जनता को डराना ठीक नहीं है| गाँव के नजदीक स्थित ज्योतिर्लिंग भीमा शंकर मंदिर में पूजा पाठ  किया जा रहा है | अभी पीड़ितों की  मदत ज्यादा जरुरी है या पूजा ? राज्य सरकार ने मृतकों के परिवार को ५-५ लाख रुपये का मुवाब्ज़ा का एलान कर चूका है , केंद्र सरकार भी २-२ लाख मुवाब्ज़ा का एलान किया है | लेकिन प्रश्न उठता है कि जिस परिवार के एक भी व्यक्ति जीवित नहीं है तो मुवाब्ज़ा किसको मिलेगा  ? कौन लेगा मुवाब्ज़ा ? क्या यह मुवाब्ज़ा सरकारी मसिनरी में दफ़न हो जायेगा या सरकारी खजाने से निकलेगा ही नहीं ? केवल घोषणा बनकर रह जायेगा?

             माना जाता है भक्त हैं तभी भगवान् का मान  है ,मर्यादा है , अस्तित्व है |अगर भक्त ही नहीं है तो भगवान को कौन पुजेगा ? उनके अस्तित्व को कौन स्वीकार करेगा ? इसीलिए भगवान् भक्तों का नुक्सान नहीं कर सकता | मंदिर के पुजारी और प्रबंधक इस बात को नज़र अंदाज़ कर देते हैं | वे भूल जाते हैं कि मंदिर में दान भक्त ही  करते है | तिरुपति का बालाजी मंदिर हो या शिर्डी का साईं मंदिर हो  ,उनके  खजाने में जो भी अरबों की संपत्ति जमा है ,सब भक्तो का ही तो दिया हुआ है | अब जब भक्त मुसीबत में है तो क्या वे रुपये भक्तो का काम नहीं आना चाहिए ? क्या मंदिरों के प्रबंधक मिलकर पीड़ित व्यक्तियों के लिए नया गाँव बसा नहीं सकता ? उनके खेतीबाड़ी ,व्यवसाय का इंतजाम नहीं कर सकता ? बच्चों के लिए दूध और बड़ों के लिए भोजन,वस्त्रादि का इंतजाम नहीं कर सकता ? इस मुसीबत के मारे लोगों के लिए यदि इन रुपये का उपयोग नहीं हुआ  तो यह अकूत धनराशी किसके और किस काम आएगा ? हवन के नाम से  घी जलाना और अभीषेक  के नाम से दूध का नदी बहाना क्या उचित है जहाँ बच्चे कुपोषण से ग्रसित हैं और दूध के लिए विलख रहे हैं? अभीषेक  के बदले यदि दूध बच्चों को पीने केलिए दिया जाय तो क्या महादेव नाराज़ हो जायेंगे ? शायद जनहितकारी यह कार्य पुजारी एवं प्रबंधकों को मंजूर नहो, कारण सर्व  विदित है |

                साईं फ़क़ीर थे और उन्होंने हर इंसानकी मदत की जो मुसीबत में पड़कर उनके पास आया |मालन गाँव के सभी निवासी साईं के भक्त है और भगवान शकर की भी, किन्तु मंदिरों के प्रबंधकों को भगवन के भक्तों की कोई चिंता नहीं | भगवान् शंकर का एक नाम आशुतोष भी है जिसका अर्थ है तुरंत,आसानी से  या थोड़े में खुश होनेवाले देव |क्या ऐसा देव भक्तों का अनिष्ट कर सकता है ? कभी नहीं ,कभी नहीं ...| क्या प्रबंधक और पूजारी साईं के परोपकार करने की  सिद्धांत से और आशुतोष के गुणों से कुछ नहीं सीखा ?


कालीपद "प्रसाद "











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गुरुवार, 24 जुलाई 2014

अच्छे दिन आयेंगे !



च्छे दिन आयेंगे, मैंने कहा था
जनता के लिए नहीं ,मैंने अपने लिए कहा था |
कमल का फुल खिलेगा ,मैंने कहा था
जनता के लिए नहीं ,मैंने पार्टी के लिए कहा था |

महंगाई कम होगी ,मैंने कहा था
जनता के लिए नहीं ,मैंने नेताओं लिए कहा था |
परिवर्तन लाभ का सौदा होगा ,मैंने कहा था
जनता के लिए नहीं ,मैंने साहूकारों लिए कहा था |
रामराज्य लौट आएगा ,मैंने कहा था
जनता के लिए नहीं ,भ्रष्टाचारियों लिए कहा था |
हर बात का गलत अर्थ निकाला ,जो मैंने कहा था
जनता समझी अपने लिए,उनके लिए कुछ नहीं कहा था |

कालीपद "प्रसाद "
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