शुक्रवार, 24 जनवरी 2014

मेरी प्रियतमा आ !


तृतीय प्रहर रात्रि का
बनकर अभिसारिका
चुपके से मुझे छोड़कर
तू बड़ी निर्लज्ज होकर
भाग जाती है कहीं |
मैं ढूंढ़ता हूँ तुझे यहाँ वहाँ
तू मिलती नहीं कहीं |
इन्तेजार में तेरी
बदल बदल कर करवट
राह देखता हूँ तेरी |
मेरी जवानी में तू कभी
गई नहीं छोड़कर मुझे कभी
उम्र की इस पढाव पर
सहन नहीं होता विरह ,
परायापन ,बेरुखी तेरी |
जानता हूँ ........
तुझे मेरी जरुरत नहीं है
पर मुझे तेरी जरुरत है
और रहेगी जीवन भर ,
तू मुझे और ना सता
ऐ मेरी प्राणप्रिया !
नाराज न हो ,लौटकर आ,
आ मेरी प्रियतमा आ
आ मेरी चिर साथी आ
आ कर मेरी आखों में बस जा
मुझे शांति से सुला जा
आ मेरी प्रियतमा “निद्रा “आ ! 

कालीपद "प्रसाद "
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मंगलवार, 14 जनवरी 2014

बोलती तस्वीरें !



                                                     तस्वीरें क्या बोल  रही है ?








निस्तब्द निशा ,दिशाएं भी खामोश थी 
पिया परदेश में,तन मन में उदासी थी
मेरा रोना देख , रजनी और चाँद भी रोया
अश्रु इतना गिरा ,सिन्धु में ज्वार आ गया | 





धान की लम्बी लम्बी बालियाँ झुककर
नम्रता से मानव को यह  बतलाती है 
तुमने धरती को एक दाना दिया था
धरती ने हजार दाना लौटाया है |









हरा है पौधा ,पीला है सरसों का फूल 
फल इसका क्षुद्र, ज्यों एक कण धुल
हरी साडी पहनाती वो धरती  को 
और बेणी में लगाती  है पीला फुल |





ना छंद का ज्ञान ,ना  गीत ,ना ग़ज़ल लिखता हूँ
दिल के आकाश में बिखरे बादलों को शब्द देता हूँ 
इसे जो सुन सके वो संवेदनशील प्रबुद्ध ज्ञानी  हैं
विनम्र हो  ,झुककर  उन्हें  मैं  नमन  करता  हूँ |



कालीपद 'प्रसाद "
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मंगलवार, 7 जनवरी 2014

लघु कथा

(यह एक सत्यकथा है , परन्तु पात्रों का नाम बदल दिया गया गया है )


             रमेश एक मिलिटरी शिक्षा संस्था में शिक्षण का काम करता था |उस संस्था में शिक्षण का काम सिविलियन इंस्ट्रक्टर ही करते थे परन्तु उनके अनुपस्थिति में मिलिटरी आफिसर की  पोस्टिंग होती थी |ऐसे ही एक परिस्थिति में मेज़र शर्मा की पोस्टिंग उस संस्था में हुआ था | तीन  मिलिटरी आफिसर पहले थे| इनको मिला कर चार आफिसर  हो गए | सिविलियन और मिलिटरी आफिसर मिलकर सोलह /सत्रह सदस्य थे|
             मेज़र शर्मा वैसे तो बहुत अच्छे व्यक्ति थे परन्तु उनका एक तकिया कलाम था जिसके वजह उनको लोग घमंडी समझते थे | वह सिविलियन के बारे  में जब भी कुछ कहते ,शुरू "ब्लडी सिविलियन " से करते थे, जैसे ब्लडी सिविलियन अनुशासन हीन है ,ब्लडी सिविलियन बड़े सुस्त है ,इत्यादि ........
             एक दिन टी ब्रेक में स्टाफ रूम में बैठकर सब लोग चाय पी रहे थे| चाय पीते पीते इधर उधर की बाते हो रही थी !सरकारी काम में देरी क्यों होती है ? इसपर चर्चा शुरू हुई तो मेज़र शर्मा शुरूकर दिया ,"ब्लडी सिविलियन काम ही नहीं करते, दिनभर इधर उधर की बाते करते हैं |एक दिन का  काम को करने में दस दिन लगाते हैं ! रमेश को बुरा लगा लेकिन सीधा कुछ नहीं कहा | उसने कहा, "मेज़र शर्मा  सच कह रहे हैं कोई सिविलियन काम ही नहीं करता |देश आगे कैसे बढेगा ? " फिर मेज़र शर्मा को संबोधन कर पूछा ,"मेज़र शर्मा आपके कितने भाई बहन है ?"
मेज़र शर्मा ने कहा कि दो भाई और एक बहन है !
"आपके भाई क्या काम करते हैं " रमेश ने पुछा |
वह निजी कंपनी में इंजिनीअर हैं |
"बहन क्या कर रही है? " रमेश ने फिर पुछा
"वह टीचर है |"
"आपके पिताजी क्या काम करते हैं ?"
वह इंजिनीअर थे अब रिटायर हैं |
"अर्थात आपके घरमे एक अकेला आप ही मिलिटरी आफिसर है बाकी सब ब्लडी  सिविलियन है ,है न ?" रमेश ने कहा |
इसे सुनते ही मेंजर शर्मा का चेहरा देखने लायक था ,उसने कुछ नहीं कहा लेकिन उस दिन से  उनको ब्लडी सिविलियन कहते किसी ने नहीं सुना !


कालीपद "प्रसाद "

शुक्रवार, 3 जनवरी 2014

विचित्र प्रकृति



चार मुक्तक (प्रकृति पर )




 हिम शिखर है या सफ़ेद ओड्नी पहनी है धरती
हरा लहंगा पर रंग विरंगे फुल सजाई धरती
सरिता के स्रोत  से कुछ रेखाएं भी खींची है
काले काले बादल से काजल लगाईं धरती |



घन घोर काली घटाएं रवि का रास्ता रोक लिया
धरती के आँगन को काली चादर से ढक दिया
किन्तु रवि -रश्मि नहीं मानती कोई बाधा
बादल के सीना चीरकर रवि का उदय हुआ |








नहीं जन ,नहीं जल कण की निशान कहीं 
जहाँ तक नजर जाय ,बालुकण  के ढेर वहीँ 
किन्तु करिश्मा धरती की  देखो गौर से 
सुखा महा मरुभूमि में शाद्वल सूखता नहीं |


शाद्वल=जलाशय=oasis





आधारहीन नभ में देखो असंख्य तारे लटके हैं 
क्रम से सब अपने पथ में आवागमन करते हैं 
नहीं करते अतिक्रम कोई किसी और के रास्ते में 
तभी तो जिन्दा है ,अनादि काल से भ्रमण करते हैं |



कालीपद "प्रसाद "
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